स्टेविया एक आयुर्वेदिक पौधा है जो मधुमेह और मोटापे में अमृत के समान है। यहां एक हैरानी की बात ये है कि स्टेविया गन्ने के मुकाबले 300 गुना ज्यादा मीठा होने के बावजूद यह मधुमेह को रोकने में सहायक साबित होता है। पेक्रियाज से इंसुलिन आसानी से मुक्त होता है। आयुर्वेद के विशेषज्ञों के मुताबिक स्टेविया के चार पत्तों का चायपत्ती की तरह से इस्तेमाल किया जाये तो यह मधुमेह और मोटापे में रामबाण का काम करता है। इसको पचाने से शरीर में एन्जाइम नहीं होता है और न ही ग्लुकोज ही मात्रा बढ़ती है। इसमे आवश्यक खनिज और विटामिन होते हैं। इसे चाय, कॉफी और दूध आदि के साथ उबाल कर प्रयोग किया जा सकता है।
यह पेंक्रियाज की बीटा कोशिकाओं पर असर डाल कर इंसुलिन तैयार करने में मदद करता है। इसे सीमित मात्रा में इस्तेमाल करने के लिए गमले में भी लगाया जा सकता है। घर की जरूरत के लिए दो गमले ही काफी हैं। और जो घर में नहीं लगा सकते वो इसे बाजार से खरीद सकते हैं। मधुमेह और मोटापे से पीड़ित लोगों के लिए यह फायदेमंद है जिससे वो मिठाई खाने का भी लुत्फ उठा सकते हैं और साथ ही हेल्थ का टेंशन भी नहीं होगा।
स्टेविया की औषधीय गुणों के कारण ही इसकी मांग धीरे धीरे बढ़ रही है। लिहाजा स्टेविया की खेती करके कृषक ठीक ठाक मुनाफा कमा सकते हैं। भारत के पंजाब में इसकी खाती हाल फिलहाल तेजी से लोकप्रियता पकड़ रही है। पूरे देश में पंजाब ही इस क्षेत्र में सबसे आगे है और किसानों का मार्गदर्शन कर रहा है। इसकी खेती के लिए किसान सरदार राजपाल सिंह गांधी जो वकील भी हैं उन्होंने सफल प्रयोग किया है।
साल 2003-04 में वकील साहब ने 6 एकड़ जमीन पर स्टेविया की खेती शुरू की जो अब बढ़कर 25 एकड़ तक पहुंच चुका है। इन्होंने 15 और किसानों से भी स्टेविया की फसल करवाई। किसान राजपाल बताते हैं, ”इसकी खेती लाभदायक साबित हो सकती है, यह एक औषधीय फसल है। इसकी फसल के लिए पंजाब की जलवायु और मौसम अनुकूल है। इसकी पत्तियों में कुदरती मिठास है और यह चीनी के मुकाबले कई गुना ज्यादा मीठी होती है। इसके पौधे से जो पाउडर तैयार किया जाता है वो चीनी के मुकाबले 300 गुना ज्यादा मीठी है। इसमे कैलरी की मात्रा शून्य है जो मधुमेह के रोगियों और अपने स्वास्थ्य को लेकर सतर्क रखनेवालों के लिए वरदान है।
यह फसल भारत में कुछ साल पहले ही आई है लेकिन दक्षिण अमेरिकी देश पराग्वे में करीब 1500 साल से होती रही है, साथ ही इससे अच्छी कमाई कर रहे हैं और इससे बने सामान का इस्तेमाल कर रहे हैं। राजपाल गांधी बताते हैं, “2003 में जब हमने इसकी खेती शुरू की तो हमें काफी दिक्कत का सामना करना पड़ा, इसकी मार्केटिंग को लेकर कुछ परेशानी आई। इस पौधे से पाउडर निकालने की तकनीक हमारे देश में नहीं थी इससे भी परेशानी हुई। ग्रीन वैली फार्म में ही हम केंद्र सरकार की मदद से इससे पाउडर निकालने का काम शुरू किया। सरकार से इसके लिए ऋण भी मिला है। हमारी योजना है कि एक हजार हेक्टेयर क्षेत्र खेत में करने और इससे और दूसरे किसानों को जोड़ने, उन्हें भी मदद देने का मकसद है। इसके लिए सारी सुविधाएं मौजूद है जिसका खेत से लेकर बाजार तक बेचने की पूरी तैयारी है”।
यह फसल भारत में कुछ साल पहले ही आई है लेकिन दक्षिण अमेरिकी देश पराग्वे में करीब 1500 साल से होती रही है, साथ ही इससे अच्छी कमाई कर रहे हैं और इससे बने सामान का इस्तेमाल कर रहे हैं। राजपाल गांधी बताते हैं, “2003 में जब हमने इसकी खेती शुरू की तो हमें काफी दिक्कत का सामना करना पड़ा, इसकी मार्केटिंग को लेकर कुछ परेशानी आई। इस पौधे से पाउडर निकालने की तकनीक हमारे देश में नहीं थी इससे भी परेशानी हुई। ग्रीन वैली फार्म में ही हम केंद्र सरकार की मदद से इससे पाउडर निकालने का काम शुरू किया। सरकार से इसके लिए ऋण भी मिला है। हमारी योजना है कि एक हजार हेक्टेयर क्षेत्र खेत में करने और इससे और दूसरे किसानों को जोड़ने, उन्हें भी मदद देने का मकसद है। इसके लिए सारी सुविधाएं मौजूद है जिसका खेत से लेकर बाजार तक बेचने की पूरी तैयारी है”।
स्टीविया की खेती के अपने कुछ उल्लेखनीय फायदे भी हैं। दूसरी आम फसल के मुकाबले इससे ज्यादा आमदनी होती है। इसमे किसी कीटनाशक छिड़कने की जरूरत नहीं होती है क्योंकि इसमे कोई कीड़ा नहीं लगता है, साथ ही इस फसल को कोई मवेशी या जानवर भी नहीं खाता है। यह फसल प्राकृतिक आपदा का सामना करने में पूरी तरह सक्षम है, जैसे कि इसे ना तो ज्यादा गर्मी के मौसम से परेशानी है और ना ही ज्यादा ठंड से कोई नुकसान पहुंचता है। इसकी खेती में एक और फायदा ये है कि इसमे सिर्फ देसी खाद से ही काम चल जाता है। सबसे बड़ा फायदा ये है कि इसकी बुवाई सिर्फ एक बार की जाती है और सिर्फ जून और दिसंबर महीने को छोड़कर दसों महीनों में इसकी बुवाई होती है। एक बार फसल की बुवाई के बाद पांच साल तक इससे फसल हासिल कर सकते हैं। साल में हर तीन महीने पर इससे फसल प्राप्त कर सकते हैं।, एक साल में कम से कम चार बार कटाई की जा सकती है। वकील साहब कहते हैं, ” पांच साल के बाद भी यह फसल पूरी तरह खत्म नहीं हो जाती है बल्कि इसकी जड़ें काफी फैल जाती है। पांच साल बाद इसकी मिट्टी में थोड़ा बदलाव कर इस पौधे की जड़ को दूसरी जगह स्थानांतरित किया जा सकता है। इस फसल के लिए राजपाल सिंह किसानों से एक कॉन्ट्रेक्ट करते हैं और उन्हें वो सभी जरूरी सुविधाएं प्रदान करते हैं ताकि फसल अच्छी तरह पैदा हो सके और उसे बाजार में सही कीमत मिल सके।
ब्राजील और इजरायल जैसे देशों से भी और अच्छी किस्म के लिए सहयोग लिया जा रहा है। इस फसल के लिए ना तो ज्यादा खाद की जरूरत है और ना ही किसी छिड़काव की ही जरूरत है। इसमे पानी की खपत भी ज्यादा नहीं होती है और सिंचाई के लिए ड्रिप और मल्च व्यवस्था सटीक बैठती है। इससे कुल मिलाकर खर्च भी काफी कम बैठता है। मल्च व्यवस्था में खर-पतवार पर नियंत्रण करने में भी काफी मदद मिलती है। इस फसल के साथ दूसरी फसल भी लगाई जा सकती है और इसके लिए सफल प्रयोग भी किया जा चुका है। इस फसल के साथ सिट्रस और किन्नू की भी खेती जा सकती है। इसमे पानी की जरूरत काफी कम पड़ती है। एक अनुमान के मुताबिक एक पौधे पर महज एक ग्लास पानी(300एमएल) का ही खर्च बैठता है। इस फसल के साथ सबसे बड़ी बात ये है कि यह पर्यावरण के लिए बेहद फायदेमंद है। इससे ना तो मिट्टी को नुकसान पहुंचता है और ना ही इससे हवा को नुकसान पहुंचता है। दूसरे शब्दों में यह फसल एक क्रांतिकारी फसल है जो ना सिर्फ पानी की बड़ी बचत करता है बल्कि मिट्टी के साथ-साथ हवा को भी शुद्ध रखता है। दूसरी तरफ इसकी खेती से किसानों को अच्छा खासा फायदा भी पहुंचता है।
स्टेविया की खासियतें और फायदे-
स्टीविया में कैलरी- जीरो
कार्बोहाइड्रेट- जीरो
केमिकल- जीरो
कोलेस्ट्रॉल- जीरो
स्टेविया का वनस्पति विज्ञान
श्रेणी- सगंधीय
समूह- वनज
वनस्पति का प्रकार- शाकीय
वैज्ञानिक नाम- स्टेविया रेवूडियाना
सामान्य नाम- स्टेविया
कुल- एस्ट्रेसी
ऑर्डर- एस्ट्रेलेस
प्रजातियां: स्टेविया रेवूडियाना (बर्तोनी) हेम्सल यूपाटेरियम रेवूडियाना
स्टेविया एक छरहरा (पतला) सदाबहार शाकीय पौधा है। इसकी मिठास के कारण इसे ‘हनी प्लांट’ भी कहा जाता है। इसका उपयोग पूरी दुनिया में 400 साल से किया जा रहा है। यह एक मात्र पौधा है जिसमे कोई दोष नहीं होते हैं। प्राचीन काल से शक्कर भोजन का आवश्यक घटक है जो कि गन्ने (60%) और चुकंदर से प्राप्त होती है। लेकिन इस प्रकार से प्राप्त शक्कर में मिठासपन के गुण मौजूद तो होते हैं लेकिन जो मधुमेह के रोगी के लिए हानिकारक होते हैं। स्टेविया की पत्तियों में शक्कर की तुलना में 30 से 45 गुना ज्यादा मिठास पाई जाती है। इसे मिठास के उद्देश्य से प्रत्यक्ष रुप से (सीधे) उपयोग कर सकते हैं।
आकृति विज्ञान, बाह्य स्वरुप
स्वरुप- यह एक छरहरा और सदाबहार पौधा है।
पत्तियां- पत्तियां एक-दूसरे के आमने-सामने क्रमबद्ध रुप में होती है।
फूल- फूल छोटे और सफेद रंग के होते हैं।
परिपक्व ऊंचाई- इसके पौधे की ऊंचाई 60 से 70 सेमी तक होती है।
बुवाई का समय
यह अर्ध-नम और सम उष्ण कटिबंधीय पौधा है। इसकी पैदावार 10 डिग्री सेल्सियस से 41 डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच अच्छी होती है। इसकी अच्छी पैदावार के लिए औसत वार्षिक तापमान 31 डिग्री सेल्सियस और 140 से.मी. वार्षिक वर्षा अनुकूल होती है। गर्म तापमान और निम्न पाले में इसकी पत्तियों की पैदावार अधिक होती है। दिन का तापमान 41 डिग्री सेल्सियस से अधिक और रात का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से कम नहीं होना चाहिए।
भूमि
इसकी पैदावार रेतीली दोमट मिट्टी में बेहतर जल निकासी के साथ अच्छी होती है। लवणीय (लवण युक्त) मिट्टी इसकी पैदावार के लिए अच्छी नहीं होती है। जल की निकासी अच्छी होनी चाहिए। मृदा का पीएच मान 6 से 8 पैदावार के लिए उत्तम होता है।
बुवाई के मौसम का महीना
बुवाई का सर्वश्रेष्ठ समय फरवरी-मार्च का होता है।
बुवाई की विधि
भूमि को एक से दो बार जोतक भुरभुरा बना लेना चाहिए। अंतिम जुताई के समय मिट्टी में एफवाईएम यानी फार्म यार्ड मन्योर यानी खाद को अच्छी तररह मिलाना चाहिए। जुताई के समय मिट्टी में ट्रिकोडर्मा मिलाना चाहिए। खेत में कतारें यानी क्यारियां एक से डेढ़ फीट ऊंची और लगभग दो फीट चौड़ी होनी चाहिए। कतारों से कतारों के बीच की दूरी 40-40 से.मी. होना चाहिए।
फसल पद्धति विवरण
इसे बीजों के द्वारा बोया जा सकता है। बीजों द्वारा अंकुरण बहुत कम धीमी गति से होता है। इसलिए आम तौर पर इस विधि का उपयोग नहीं किया जाता है।
उत्पादन प्रोद्योगिकी खेती
बुवाई के पूर्व खेत में 50 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद मिलाना चाहिए। 60: 30:45 या 110: 45: 45 कि.ग्रा. के अनुपात में एनपीके (नाइट्रोजन,फॉस्फोरस और पोटाशियम)की मात्रा देनी चाहिए। बोरान और मैग्नीज का छिड़काव करके सूखी पत्तियों की उपज को बढ़ाया जा सकता है।
घासपात नियंत्रण प्रबंधन
बुवाई के एक महीने बाद पहली निदाई करना चाहिए। इसके पश्चात प्रति पखवाड़े में निदाई करना चाहिए। हाथ से निदाई करके भी खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है।
फसल कटाई का समय
रोपण के तीन महीने पश्चात फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जमीन से 5 से 8 से.मी. ऊपर से तने की कटाई करनी चाहिए ताकि पौधा फिर बन सके (बढ़) सके। 90 दिनों के अंतराल पर क्रमागत कटाई की जा सकती है।
फसल काटने के बाद और मूल्य परिवर्धन
सुखाना
पत्तियों को पतली परत के रुप में फैलाकर छाया में सुखाया जाता है। पत्तियों को तब तक सुखाया जाता है जब तक कि इनका वजन स्थिर ना हो जाए।
निष्कर्षण
आसवन साल्वेंट विधि द्वारा किया जाता है। पत्तियों के सूख जाने के बाद उन्हें आसवित करने ले जाना चाहिए।

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