(Category) : सगंधीय
समूह (Group) : वनज
वनस्पति का प्रकार : शाकीय
वैज्ञानिक नाम : मेंथा अर्वेंसिस
सामान्य नाम : पुदीना
समूह (Group) : वनज
वनस्पति का प्रकार : शाकीय
वैज्ञानिक नाम : मेंथा अर्वेंसिस
सामान्य नाम : पुदीना
उपयोग :
§ इसका प्रयोग बड़ी संख्या में औषधीय में सुगंध लाने के लिए किया जाता है।
§ नाक और श्वसन संबंधी उपचार की दवा में व्यापक रूप से इसका प्रयोग किया जाता है।
§ इसके अलावा इसका प्रयोग नसों का दर्द और गठिया के उपचार में पीड़ा नाशक के रूप में किया जाता है।
§ टूथपेस्ट, दंत क्रीम, मिठाई, पेय पदार्थ, तम्बाकू, सिगरेट और पान मसाला जैसे अन्य वस्तुओं के निर्माण में उपयोग किया जाता है।
उपयोगी भाग :
§ पत्तियाँ
उत्पादन क्षमता :
§ 20-25 टन/हेक्टेयर
उत्पति और वितरण :
ऐसा माना जाता है कि इसकी उपत्ति भूमध्य सागरीय क्षेत्र से हूई है और वहाँ से यह संपूर्ण विश्व में प्राकृतिक और कृत्रिम माध्यम से फैल गया। भारत, ब्राजील, पैराग्वे, चीन, अर्जेंटाईना, जापान, थाईलैंड और अंगोला में इसकी खेती की जाती है। भारत में इसकी खेती उत्तर प्रदेश व पंजाब में की जाती है।
वितरण : मेन्थाल का मुख्य स्त्रोत पुदीना हैं। इसे जापानी पुदीना भी कहते है। यह एक छोटा शाकीय पौधा है जो सीधा उगता है। पौधा मुख्य रूप से बगीचे में उगाया जाने वाला शाकीय पौधा हैं। भारत में शीतोष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में सफलता पूर्वक इसकी खेती की जाती है।
§ इसका प्रयोग बड़ी संख्या में औषधीय में सुगंध लाने के लिए किया जाता है।
§ नाक और श्वसन संबंधी उपचार की दवा में व्यापक रूप से इसका प्रयोग किया जाता है।
§ इसके अलावा इसका प्रयोग नसों का दर्द और गठिया के उपचार में पीड़ा नाशक के रूप में किया जाता है।
§ टूथपेस्ट, दंत क्रीम, मिठाई, पेय पदार्थ, तम्बाकू, सिगरेट और पान मसाला जैसे अन्य वस्तुओं के निर्माण में उपयोग किया जाता है।
उपयोगी भाग :
§ पत्तियाँ
उत्पादन क्षमता :
§ 20-25 टन/हेक्टेयर
उत्पति और वितरण :
ऐसा माना जाता है कि इसकी उपत्ति भूमध्य सागरीय क्षेत्र से हूई है और वहाँ से यह संपूर्ण विश्व में प्राकृतिक और कृत्रिम माध्यम से फैल गया। भारत, ब्राजील, पैराग्वे, चीन, अर्जेंटाईना, जापान, थाईलैंड और अंगोला में इसकी खेती की जाती है। भारत में इसकी खेती उत्तर प्रदेश व पंजाब में की जाती है।
वितरण : मेन्थाल का मुख्य स्त्रोत पुदीना हैं। इसे जापानी पुदीना भी कहते है। यह एक छोटा शाकीय पौधा है जो सीधा उगता है। पौधा मुख्य रूप से बगीचे में उगाया जाने वाला शाकीय पौधा हैं। भारत में शीतोष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में सफलता पूर्वक इसकी खेती की जाती है।
कुल : लेमीअऐसी
आर्डर : लेमीअलेस
प्रजातियां :
§ मैंथा अर्वेन्सिस
वितरण :
मेन्थाल का मुख्य स्त्रोत पुदीना हैं। इसे जापानी पुदीना भी कहते है। यह एक छोटा शाकीय पौधा है जो सीधा उगता है। पौधा मुख्य रूप से बगीचे में उगाया जाने वाला शाकीय पौधा हैं। भारत में शीतोष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में सफलता पूर्वक इसकी खेती की जाती है।
आर्डर : लेमीअलेस
प्रजातियां :
§ मैंथा अर्वेन्सिस
वितरण :
मेन्थाल का मुख्य स्त्रोत पुदीना हैं। इसे जापानी पुदीना भी कहते है। यह एक छोटा शाकीय पौधा है जो सीधा उगता है। पौधा मुख्य रूप से बगीचे में उगाया जाने वाला शाकीय पौधा हैं। भारत में शीतोष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में सफलता पूर्वक इसकी खेती की जाती है।
स्वरूप :
§ यह एक कोमल, बहुवर्षीय शाकीय पौधा है जो जमीन के ऊपरी सतह पर रहती है।
§ इसकी शाखाये शख्त और रोमिल होती है।
पत्तिंया :
§ पत्तियाँ नुकीली आयताकार, 3-7 से 10 से.मी. लंबी, दांतेदार और रोयेंदार होती है।
फूल :
§ फूल श्रेणी में होते है जो आमतौर पर बिना ठंडल के होते है।
§ फूल बैंगनी रंग के छोटे होते है।
§ यह एक कोमल, बहुवर्षीय शाकीय पौधा है जो जमीन के ऊपरी सतह पर रहती है।
§ इसकी शाखाये शख्त और रोमिल होती है।
पत्तिंया :
§ पत्तियाँ नुकीली आयताकार, 3-7 से 10 से.मी. लंबी, दांतेदार और रोयेंदार होती है।
फूल :
§ फूल श्रेणी में होते है जो आमतौर पर बिना ठंडल के होते है।
§ फूल बैंगनी रंग के छोटे होते है।
-- इसकी कोई किस्म जारी नहीं की गई है --
जलवायु :
§ सिंचाई के अंतर्गत इसे सभी उष्णकिटबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जा सकता है।
§ यह पौधा किसी भी प्रकार की नमी युक्त सर्दी को सहन नहीं करता है।
§ 20-250C तापमान में इसकी वानस्पतिक पैदावार अच्छी होती है। किन्तु भारतीय परिस्थितियों में 300C से अधिक तापमान पर तेल और मेन्थाँल की मात्रा अधिक मिलती है।
भूमि :
§ पुदीना की खेती के लिए मध्यम से लेकर उपजाऊ गहरी मिट्टी आदर्श मानी जाती है।
§ मिट्रटी में जल धारण करने की क्षमता अधिक होती है परन्तु जल भराव की स्थिति से बचना चाहिए।
§ मिट्टी का pH मान 6-7.5 होना चाहिए।
मौसम के महीना :
§ बुबाई ठंड़ के महीनों में की जाती हैं।
§ सिंचाई के अंतर्गत इसे सभी उष्णकिटबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जा सकता है।
§ यह पौधा किसी भी प्रकार की नमी युक्त सर्दी को सहन नहीं करता है।
§ 20-250C तापमान में इसकी वानस्पतिक पैदावार अच्छी होती है। किन्तु भारतीय परिस्थितियों में 300C से अधिक तापमान पर तेल और मेन्थाँल की मात्रा अधिक मिलती है।
भूमि :
§ पुदीना की खेती के लिए मध्यम से लेकर उपजाऊ गहरी मिट्टी आदर्श मानी जाती है।
§ मिट्रटी में जल धारण करने की क्षमता अधिक होती है परन्तु जल भराव की स्थिति से बचना चाहिए।
§ मिट्टी का pH मान 6-7.5 होना चाहिए।
मौसम के महीना :
§ बुबाई ठंड़ के महीनों में की जाती हैं।
भूमि की तैयारी :
§ इसे अच्छी तरह से जुताई और हेरो की गई मिट्टी की आवश्कता होती है।
§ सभी प्रकार की घास – फूँस को रोपाई के पहले हटा दिया जाता है।
§ भूमि की तैयारी के दौरान खाद को 25 से 30 टन/हे FYM के साथ मिलाकर दिया जाता है।
§ रोपण के पहले हरी खाद भी दी जाती है।
फसल पद्धति विवरण :
भूस्तरी द्दारा
§ भूस्तरी पिछले साल के रोपण से प्राप्त किए जाते है।
§ एक हेक्टेयर भूमि के लिए 400 कि.ग्रा भूस्तरी की आवश्यकता होती है।
§ भूस्तरी प्राप्त करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माह दिसम्बर और जनवरी होते है।
रोपाई (Transplanting) :
§ भूस्तरी को छोटे टुकड़ो (7-10 से.मी.) में काटा जाता है और 45-60 से.मी. की कतार से कतार की दूरी पर 7-10 सें.मी. तक की गहराई में लगाया जाता है।
§ रोपण के तुरंत बाद भूखंड की सिंचाई की जाती है।
§ इसे अच्छी तरह से जुताई और हेरो की गई मिट्टी की आवश्कता होती है।
§ सभी प्रकार की घास – फूँस को रोपाई के पहले हटा दिया जाता है।
§ भूमि की तैयारी के दौरान खाद को 25 से 30 टन/हे FYM के साथ मिलाकर दिया जाता है।
§ रोपण के पहले हरी खाद भी दी जाती है।
फसल पद्धति विवरण :
भूस्तरी द्दारा
§ भूस्तरी पिछले साल के रोपण से प्राप्त किए जाते है।
§ एक हेक्टेयर भूमि के लिए 400 कि.ग्रा भूस्तरी की आवश्यकता होती है।
§ भूस्तरी प्राप्त करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माह दिसम्बर और जनवरी होते है।
रोपाई (Transplanting) :
§ भूस्तरी को छोटे टुकड़ो (7-10 से.मी.) में काटा जाता है और 45-60 से.मी. की कतार से कतार की दूरी पर 7-10 सें.मी. तक की गहराई में लगाया जाता है।
§ रोपण के तुरंत बाद भूखंड की सिंचाई की जाती है।
-Nil-
-Nil-
खाद :
§ नाइट्रोजनी उर्वरक भारी मात्रा में देने पर पुदीना अच्छी तरह फलता फूलता है।
§ पुदीने की अच्छी फसल के लिए 80-120 कि.ग्रा. की दर से नाइट्रोजनी उर्वरक, 50 कि.ग्रा. की दर से P और K, 40 कि.ग्रा./हे की दर से K2O एक अच्छी फसल के लिए आवश्यक होते है।
सिंचाई प्रबंधन :
§ पुदीने को पानी की आवश्यकता बहुत अधिक होती है।
§ मिट्टी और जलवायु की स्थिति को देखते हुए प्रथम मानसून के पहले फसल की सिंचाई 6-9 बार की जाती है।
§ मानसून बाद सितम्बर, अक्टूबर और नवम्बर माह में के दौरान तीन बार सिंचाई की आवश्यकता होती है।
§ यदि पौधो की वृध्दि सुस्त पड़ जाती है और सर्दियों के दिनों में बारिश नही होती है तब कभी-कभी सर्दियो के दौरान सिंचाई की आवश्यता होती है।
§ यदि पुदीने को समशीतोष्ण जलवायु मे उगाया जाता है तो जुलाई और अक्टूबर माह के दौरान केवल 3-4 सिंचाई की आवश्यकता होती है।
घसपात नियंत्रण प्रबंधन :
§ फसल के विकास के प्रारंभिक दौर में पुदीने को नियमित अंतराल पर निंदाई और गुड़ाई की आवश्यकता होती है।
§ प्रथम कटाई के बाद हाथ से निंदाई की आवश्यकता होती है।
§ एक बडी तादात में खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए सिन्वर का 1 कि.ग्रा./हे की दर से छिड़काव किया जाता है।
§ नाइट्रोजनी उर्वरक भारी मात्रा में देने पर पुदीना अच्छी तरह फलता फूलता है।
§ पुदीने की अच्छी फसल के लिए 80-120 कि.ग्रा. की दर से नाइट्रोजनी उर्वरक, 50 कि.ग्रा. की दर से P और K, 40 कि.ग्रा./हे की दर से K2O एक अच्छी फसल के लिए आवश्यक होते है।
सिंचाई प्रबंधन :
§ पुदीने को पानी की आवश्यकता बहुत अधिक होती है।
§ मिट्टी और जलवायु की स्थिति को देखते हुए प्रथम मानसून के पहले फसल की सिंचाई 6-9 बार की जाती है।
§ मानसून बाद सितम्बर, अक्टूबर और नवम्बर माह में के दौरान तीन बार सिंचाई की आवश्यकता होती है।
§ यदि पौधो की वृध्दि सुस्त पड़ जाती है और सर्दियों के दिनों में बारिश नही होती है तब कभी-कभी सर्दियो के दौरान सिंचाई की आवश्यता होती है।
§ यदि पुदीने को समशीतोष्ण जलवायु मे उगाया जाता है तो जुलाई और अक्टूबर माह के दौरान केवल 3-4 सिंचाई की आवश्यकता होती है।
घसपात नियंत्रण प्रबंधन :
§ फसल के विकास के प्रारंभिक दौर में पुदीने को नियमित अंतराल पर निंदाई और गुड़ाई की आवश्यकता होती है।
§ प्रथम कटाई के बाद हाथ से निंदाई की आवश्यकता होती है।
§ एक बडी तादात में खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए सिन्वर का 1 कि.ग्रा./हे की दर से छिड़काव किया जाता है।
तुडाई, फसल कटाई का समय :
§ रोपण के 100-120 दिनों के बाद पुदीने की कटाई की जाती है जब निचली पत्तियाँ पीले रंग में बदलना शुरू हो जाती है।
§ यदि कटाई में देर हो रही है तो पत्तियाँ गिरना प्रारंभ कर देती है परिणामस्परूप तेल का नुकसान होता है।
§ कटाई चमकदार धूप में की जानी चाहिए।
§ कटाई जमीन से 2-3 से.मी. ऊपर हरी शाकीय पौधे की जाती है।
§ अगली कटाई प्रथम कटाई के 80 दिनों के बाद की जाती है। और तीसरी कटाई दूसरी कटाई के 80 दिनों के बाद की जाती है।
§ रोपण के 100-120 दिनों के बाद पुदीने की कटाई की जाती है जब निचली पत्तियाँ पीले रंग में बदलना शुरू हो जाती है।
§ यदि कटाई में देर हो रही है तो पत्तियाँ गिरना प्रारंभ कर देती है परिणामस्परूप तेल का नुकसान होता है।
§ कटाई चमकदार धूप में की जानी चाहिए।
§ कटाई जमीन से 2-3 से.मी. ऊपर हरी शाकीय पौधे की जाती है।
§ अगली कटाई प्रथम कटाई के 80 दिनों के बाद की जाती है। और तीसरी कटाई दूसरी कटाई के 80 दिनों के बाद की जाती है।
आसवन (Distillation) :
§ पुदीना तेल या तो ताजी या सूखी पत्तियों को आसवित करके प्राप्त किया जाता है।
§ आसवन दोनों विधियों पारंपरिक औप आधुनिक द्दारा किया जाता है।
§ भाप आसवन विधि का प्रयोग किया जाता है।
भडांरण (Storage) :
§ पुदीना तेल हल्का, सुनहरा और तरल होता है और यह भंडारण से पहले नमी मुक्त होना चाहिए।
§ इसे बडे इस्पात, जस्ता इस्पात या एल्युमीनियम कंटेनर में भंडारित किया जाता है।
§ भंडारण स्थान ठंडे गोदाम होना चाहिए जो प्रकाश और आर्द्रता मुक्त हो।
परिवहन :
§ सामान्यत: किसान अपने उत्पाद को बैलगाड़ी या टैक्टर से बाजार तक पहुँचता हैं।
§ दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लाँरियो के द्वारा बाजार तक पहुँचाया जाता हैं।
§ परिवहन के दौरान चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नहीं होती हैं।
अन्य-मूल्य परिवर्धन (Other-Value-Additions) :
§ पुदीना तेल
§ पुदीना तेल या तो ताजी या सूखी पत्तियों को आसवित करके प्राप्त किया जाता है।
§ आसवन दोनों विधियों पारंपरिक औप आधुनिक द्दारा किया जाता है।
§ भाप आसवन विधि का प्रयोग किया जाता है।
भडांरण (Storage) :
§ पुदीना तेल हल्का, सुनहरा और तरल होता है और यह भंडारण से पहले नमी मुक्त होना चाहिए।
§ इसे बडे इस्पात, जस्ता इस्पात या एल्युमीनियम कंटेनर में भंडारित किया जाता है।
§ भंडारण स्थान ठंडे गोदाम होना चाहिए जो प्रकाश और आर्द्रता मुक्त हो।
परिवहन :
§ सामान्यत: किसान अपने उत्पाद को बैलगाड़ी या टैक्टर से बाजार तक पहुँचता हैं।
§ दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लाँरियो के द्वारा बाजार तक पहुँचाया जाता हैं।
§ परिवहन के दौरान चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नहीं होती हैं।
अन्य-मूल्य परिवर्धन (Other-Value-Additions) :
§ पुदीना तेल

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