एक सीमांत किसान के लिए खेती के लिए एक विकल्प खोजना दरअसल सिर्फ एक विकल्प की तलाश भर ही नहीं रह गया है बल्कि यह जिंदा रहने का सवाल, अस्तित्व का सवाल बन गया है। सफलता की कहानियों के पीछे संघर्ष की गुप्त दास्तान छिपी होती है – तेज दौड़ लगाने से पहले के शुरुआत के कुछ लड़खड़ाते कदम जब लड़खड़ा कर गिरने का खतरा सबसे ज्यादा होता है। रुपनगर की ग्रेजुएट गुरविंदर कौर जिनकी शादी लुधियाना के पास कोहारा में हुई थी, ने आज ऐसे ही कुछ लड़खड़ाते कदमों के सहारे चंद कदमों का फासला तय किया है। शादी के कुछ साल बाद 2012 में उनके ससुर गुजर गए और उसके बाद हुए बंटवारे से उनके पति के पास बहुत कम ही जमीन बची। खेती के अलावा उनके परिवार ने इससे पहले कुछ भी नहीं किया था, ऐसे में अचानक उनका परिवार अस्थिर हो गया। उनके पति ने उसी गांव (जो अब कस्बे में बदल चुका है) में फोरमैन की नौकरी कर ली लेकिन उनकी आय घर चलाने के लिए नाकाफी थी। गुरविंदर कौर अपने उन दिनों को याद करके कहती हैं, “हमने अपने गांव का घर बेच दिया और इस एकड़ जमीन पर रहने के लिए आ गये। इसके बाद हम इस जमीन को बेचने के बारे में सोचने लग गए ताकि उन पैसों से हम कुछ साल गुजर बसर कर सकें। लेकिन इससे मैं और मेरे पति बेकार हो जाते। और जब बैंक बैलेंस खत्म हो जाता तो फिर उसके बाद हम क्या करते?”
छोटी सी शुरुआत
अपने घर की सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी गुरविंदर ने उस वक्त जल्दी से कुछ ठोस फैसले लिए और आश्चर्यजनक रूप से इसमे उन्हें उनकी सास का भी पूरा समर्थन मिला। उन्होंने परिवार के दूध की जरूरत पूरी करने के लिए घर में मौजुद दो गाय के भरोसे उन्होंने व्यवसायिक डेयरी खोलने का फैसला किया। गुरविंदर बताती हैं, ‘मेरी सास ने अपनी युवावस्था में अपने अपने पिता को गाय पालते देखा था और वो दोनों गाय का भी ध्यान रखती थीं। मुश्किल से तीन साल के बाद ही उनके प्रयास ने अच्छे परिणाम देने शुरू कर दिए”। गुरुविंदर कहती हैं, “ये शुरुआत के कुछ ऐसे साल थे जो हमारे लिए असहनीय था। अब हमारे पास 10 गाय, भैंस और चार बछड़े हैं। ये पशु बैंक से लोन लेकर खरीदे गए हैं इसके लिए हम बैंक को हर छह महीने में भारी ऋण अदा करते हैं। हालांकि इसके बावजूद हम अच्छी नस्ल के पशु के लिए पैसे बचाने में सफल हो जाते हैं”।
पिछले महीने ही उन्होंने अपनी डेयरी के लिए सवा लाख रुपये में एक गाय खरीदी है। गुरविंदर के पति अमनप्रीत सिंह बताते हैं, “हमने पहले एक गाय 20हजार में बेच दी और दूसरी 13 लीटर दूध प्रतिदिन देनेवाली गाय खरीदी”। गुरविंदर की सास बताती हैं, “जब चारे की जरूरत बढ़ गई तब हमने लीज पर तीन एकड़ (एक एकड़ जमीन के अलावा) जमीन और ले ली। चार एकड़ जमीन से हमें इतना अन्न और चारा मिल जाता है कि उससे घर की जरूरत और पशु की आवश्यकता पूरी हो जाती है। खेती में तो बरक्कत थी ही नहीं”।
बेहतर विकल्प
अमनप्रीत सिंह बताते हैं कि एक एकड़ जमीन में खेती कर हम ज्यादा से ज्यादा 60 हजार रुपये सालाना कमा लेते थे लेकिन डेयरी से संघर्ष के इन दिनों में भी हम सालाना करीब दो लाख रुपये कमा ले रहे हैं। अमनप्रीत सिंह कहते हैं, “इन पशुओं से हमें रोज करीब 30 लीटर दूध मिलता है जिसे हम 40 से 50रुपये प्रति लीटर के हिसाब से मिल्कफेड कॉ-ऑपरेटिव संग्रहण केंद्र या प्राइवेट कॉ-ऑपरेटिव को बेच देते हैं। कुछ दूध हम अपने घर से भी बेचते हैं। दूध में वसा की मात्रा के हिसाब से कॉ-ऑपरेटिव हमें पैसे देते हैं। शुरुआत में मिल्कफेड का रेट 50 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा था लेकिन अब ये 40 रुपये ही रह गया है। वहीं, प्राइवेट कॉ-ऑपरेटिव हमें 54 रुपये प्रति लीटर का भाव देते हैं”।
गुरविंदर बताती हैं कि साढ़े चार लाख की सालाना आमदनी में से एक बड़ा हिस्सा बैंक को लोन चुकाने में और लीज पर लिये गए तीन एकड़ जमीन के लिए चला जाता है। गुरविंदर कहती हैं, “इस इलाके में लीज रेट प्रति एकड़ 35 हजार रुपये है। बैंक को लोन चुकाने और लीज के भुगतान में कुल आमदनी में से करीब दो लाख रुपये चले जाते हैं। चूंकि हमारे अनाज का खर्च और पशुचारे का इंतजाम हो गए इसलिए हमारे बांकि के खर्च बहुत कम हो गए हैं। और जब हमारी जरूरत वार्षिक बजट से ज्यादा हो जाता है और हमें पैसे की जरूरत होती है तो हम अपना एक बछड़ा बेच देते हैं जिससे हमें तुरंत नकद रुपये मिल जाते हैं”।
घर के पीछे परिवार ने एक कनाल से भी छोटा शेड बनवा रखा है जो 15 गायों को रखने के लिए पर्याप्त है। इनकी देखभाल परिवार का प्रत्येक सदस्य मिलकर करता है। गुरविंदर कौर के परिवार में उनके अलावा उनके पति, चाचा हैं। अपने परिवार की देखभाल के लिए उन्होंने घर में एक सहायक भी रखा है। गुरविंदर बताती हैं, “गाय एक पवित्र जानवर होती हैं और वो हमें समझती हैं, हमारे निर्देश को समझती हैं इसलिए उनको संभालना आसान होता है। हम गोबर का इस्तेमाल खेत में खाद के रुप में और जलावन के तौर पर करते हैं। गाय के कृत्रिम गर्भाधान के लिए पशु चिकित्सक आसानी से उपलब्ध हैं और सिर्फ एक बुलावे पर ही चले आते हैं। बैंक ने हमारे पशुओं का बीमा कर रखा है लेकिन उसके नियमित मेडिकल जांच की व्यवस्था हमने कर रखी है। आखिरकार, वो हमारे परिवार के लिए कमानेवाला जो है”।
लोन की कठिनाई
एक अच्छी नस्ल की गाय या भैंस की कीमत 60 हजार रुपये से लेकर एक लाख के बीच होती है। किसानों के लिए पंजाब सरकार ने कुछ राष्ट्रीय बैंकों के साथ प्रति गाय 60 हजार की सीमा के साथ पशु लोन का अनुबंध किया है, लेकिन बेस रेट पर दो से ढाई फीसदी का इंटरेस्ट रेट उत्साहवर्धक नहीं है। पंजाब पशुपालन विभाग के निदेशक एचएस सान्धा बताते हैं, “लोन को सात साल में चुकाना होता है”। गाय के लिए शेड निर्माण और अन्य मशीनरी की खरीदारी के लिए भी लोन उपलब्ध हैं।
गुरविंदर कौर, जिन्होंने छह गाय खरीदी है वो बैंक को कुल 5.6 लाख रुपये की लोन (गाय के लिए 3.6 लाख और शेड के लिए दो लाख) पर छह मंथली किस्त के तौर पर 60 हजार रुपये चुकाती हैं। अमनप्रीत सिंह कहते हैं, “ये अखड़ जाता है। लोन चुकाने में हमे कुछ साल लग सकते हैं लेकिन एक बार जब लोन चुक जाएगा तब ये भैंस सिर्फ मुनाफा देनेवाली साबित होंगी। हमारे पास चार बछड़े पहले से ही है और दूसरी गाय भी बछडा जल्द देने वाली है। जब हमारे पास 20 गायें हो जाएगी उसके बाद हमारी डेयरी चमक उठेगी”।
परिवार बैंक के साथ हुए सौदे पर फिर से बात करना चाहती है। पशुपालन विभाग के निदेशक संधाना बताते हैं, “ब्याज दर में कोई बदलाव नहीं हो सकता है लेकिन हम बैंकों से बात कर रहे हैं कि वो पशु खरीदने के मामले में पहले साल किसानों से कोई प्रिंसिपल अमाउंट ना लें। ऐसा इसलिए क्योंकि जब किसान डेयरी की शुरुआत करता है तो वह दूसरे कई और मामले में भी निवेश करता है। हम चाहते हैं कि लोन लौटाने की सीमा बढ़ाकर नौ साल कर देनी चाहिए,ताकि किसानों का ऋण घट जाए”।
जमीन से लगाव
संघर्ष के दिनों में गुरविंदर कौर ने मुख्य सड़क के किनारे एक एकड़ जमीन को बेचने के लालच से खुद को बचा कर बहुत अच्छा किया। शिंदर कौर कहती हैं,“प्रॉपर्टी डीलर इसके लिए अच्छी कीमत देने के लिए तैयार हैं और यहां कोहारा के अधिकांश परिवार ने इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया है, लेकिन उनके पास अब करने के लिए कुछ नहीं है। पैसे लेकर सिर्फ घर में बैठ जाने का कोई औचित्य नहीं है”। चंडीगढ़-लुधियाना रोड पर स्थित कोहारा अब एक छोटे शहर के रुप में तेजी से बदल रहा है और सड़क के दोनों ओर की जमीन की कीमत भी बहुत ज्यादा हो गई है। वो कहती हैं, “एक एकड़ जमीन के लिए हमें आसानी से एक करोड़ मिल जाएंगे लेकिन उससे हम बेरोजगार हो जाएंगे। हम अपनी उस जमीन से जुड़े हैं जो हमें भोजन देती है”।
इस जमीन का एक आकर्षण ये भी है कि इसका इस्तेमाल किराये से आनेवाली आमदनी (रेंटल इनकम) के तौर पर भी हो सकता है। यहां जमीन के अधिकांश मालिक हॉस्टल बनवा रहे हैं ताकि इसमे उद्योग में काम करनेवाले मजदूर किराये पर रह सके खासकर वो जो लुधियाना के आस-पास रहना चाहते हैं। अपने भविष्य की योजना के बारे में गुरविंदर कौर बताती हैं कि हम भी इस तरह के विकल्प पर विचार कर सकते हैं लेकिन उससे पहले हम डेयरी से अनाज और चारे के लिए पर्याप्त कमा लें।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
1 एकड़ जमीन
खेती करने पर किसान को साठ हजार रुपये सालाना आय
डेयरी फार्म के लिए इसका उपयोग करने पर किसानों को इससे संघर्ष के दिनों में भी 2 लाख रुपये की सालाना आमदनी
डेयरी का अर्थशास्त्र –
अच्छी किस्म की गाय या भैंस की कीमत- 60 हजार से एक लाख रुपये
पशु से मिलने वाली औसत दूध की मात्रा- 20 लीटर प्रतिदिन
बैंक लोन कैप- 60 हजार रुपये प्रति गाय
ब्याज दर- बेस रेट पर 2 से 2.5 फीसदी
लोन चुकता करने के लिए वक्त- 7 साल
लोन की उपलब्धता- पशु, शेड और मशीनरी के लिए
दूसरी बड़ी आवश्यकता- चारा उपजाने के लिए जमीन
लीज पर ली गई जमीन का औसत वार्षिक खर्च- 35 हजार रुपये प्रति एकड़
20 गाय- एक डेयरी को चमकाने के लिए काफी
दूसरे फायदे- जानवरों का गोबर खाद और जलावन के लिए उपयोगी
दूध खरीदनेवाले क्या कीमत देते हैं-
मिल्कफेड (कॉ-ऑपरेटिव कलेक्शन सेंटर)- 40 रुपये प्रति लीटर
प्राइवेट कॉ-ऑपरेटिव- 54 रुपये प्रति लीटर

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